Thursday, January 14, 2016

कामसूत्र, ऋषि वात्स्यायन और विदेशी इस्लामिक दुष्प्रचार

कामसूत्र, ऋषि वात्स्यायन और विदेशी इस्लामिक दुष्प्रचार

      अक्सर मैंने कुछ लोगो विशेषत: मुसलमानों को ये कहते सुना है की सनातन धर्म में कामसूत्र एक कलंक है और वे बार बार कुछ पाखंडियो बाबाओ के साथ साथ कामसूत्र को लेकर सनातन धर्म पर तरह तरह के अनर्लग आरोप व् आक्षेप लगाते रहते हैचूँकि जब मैंने ऋषि वात्सयायन द्वारा रचित कामसूत्र का अध्ययन किया तो ज्ञात हुआ की कामसूत्र को लेकर जितना दुष्प्रचार हिन्दुओ ने किया है उतना तो मुसलमानों और अंग्रेजो ने भी नहीं कियामुसलमान विद्वान व् अंग्रेज इस बात पर शोर मचाते रहते है की भारतीय संस्कृति में कामसूत्र के साथ साथ अश्लीलता भरी हुई है और ऐसे में वे खजुराहो और अलोरा अजन्ता की गुफाओं की मूर्तियों, चित्रकारियो का हवाला दे कर भारत संस्कृति के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार करते है
      आज मैं आप सभी के समक्ष उन सभी तथ्यों को उजागर करूँगा, जिसके अनुसार कामसूत्र अश्लील होकर एक जीवन पद्दति पर आधारित हैये भारतीय संस्कृति की उस महानता को दर्शाता है जिसने पति पत्नी को कई जन्मो तक एक ही बंधन में बाँधा जाता है और नारी को उसके अधिकार के साथ धर्म-पत्नी का दर्जा मिलता है।भारतीय संस्कृति में काम को हेय की दृष्टि से देख कर जीवन के अभिन्न अंग के रूप में देखा गया हैइसका अर्थ ये नहीं की हमारी संस्कृति अश्लील है, कामसूत्र में काम को इन्द्रियों द्वारा नियंत्रित करके भोगने का साधन दर्शाया गया हैवास्तव में ये केवल एक दुष्प्रचार है की कामसूत्र में अश्लीलता है और ये विचारधारा तब और अधिक फैली जब कामसूत्र फिल्म आई थी, जिसमे काम को एक वासना के रूप में दिखा कर केवल ऋषि वात्सयायन का अपमान किया गया था अपितु ऋषि वात्स्यायन द्वारा रचित कामसूत्र के असली मापदंडो के भी प्रतिकूल है अब आगे लेख में आप पढेंगे की ऐसा क्या है कामसूत्र में??

कौन थे महर्षि वात्स्यायन
महर्षि वात्स्यायन भारत के प्राचीनकालीन महान दार्शनिक थेइनके काल के विषय में इतिहासकार एकमत नहीं हैंअधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया हैकुछ स्थानों पर इनका जीवनकाल ईसा की पहली शताब्दी से पांचवीं शताब्दी के बीच उल्लिखित हैवेकामसूत्रऔरन्यायसूत्रभाष्यनामक कालजयी ग्रथों के रचयिता थेमहर्षि वात्स्यायन का जन्म बिहार राज्य में हुआ थाउन्होंने कामसूत्र में केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, बल्कि कला, शिल्पकला और साहित्य को भी श्रेष्ठता प्रदान की हैकामसूत्रका अधिकांश भाग मनोविज्ञान से संबंधित हैयह जानकर अत्यंत आश्चर्य होता है कि आज से दो हजार वर्ष से भी पहले विचारकों को स्त्री और पुरुषों के मनोविज्ञान का इतना सूक्ष् ज्ञान थाइस जटिल विषय पर वात्स्यायन रचितकामसूत्रबहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ
भारतीय संस्कृति में कभी भीकामको हेय नहीं समझा गया काम कोदुर्गुणयादुर्भाव मानकर इन्हें चतुर्वर्ग अर्थ, काम, मोक्ष, धर्म में स्थान दिया गया हैहमारे शास्त्रकारों ने जीवन के चार पुरुषार्थ बताए हैं- ‘धर्म’, ‘अर्थ’, ‘कामऔरमोक्षसरल शब्दों में कहें, तो धर्मानुकूल आचरण करना, जीवन-यापन के लिए उचित तरीके से धन कमाना, मर्यादित रीति से काम का आनंद उठाना और अंतत: जीवन के अनसुलझे गूढ़ प्रश्नों के हल की तलाश करनावासना से बचते हुए आनंददायक तरीके से काम का आनंद उठाने के लिए कामसूत्र के उचित ज्ञान की आवश्यकता होती हैवात्स्यायन का कामसूत्र इस उद्देश् की पूर्ति में एकदम साबित होता हैकाम सुखसे लोग वंचित रह जाएं और समाज में इसका ज्ञान ठीक तरीके से फैल सके, इस उद्देश् से प्राचीन काल में कई ग्रंथ लिखे गए
      जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन बहुत ही आवश्यक है ऋषि-मुनियों ने इसकी व्यवस्था बहुत ही सोच-विचारकर दी है यानी ऐसा हो कि कोई केवल धन कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और नीति-शास्त्रों को बिलकुल ही भूल जाए या काम-क्रीड़ा में इतना ज्यादा डूब जाए कि उसे संसार को रचने वाले की सुध ही रह जाए
      जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन बहुत ही आवश्यक है ऋषि-मुनियों ने इसकी व्यवस्था बहुत ही सोच-विचारकर दी है यानी ऐसा हो कि कोई केवल धन कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और नीति-शास्त्रों को बिलकुल ही भूल जाए या काम-क्रीड़ा में इतना ज्यादा डूब जाए कि उसे संसार को रचने वाले की सुध ही रह जाए
      मनुष् को बचपन और यौवनावस्था में विद्या ग्रहण करनी चाहिए उसे यौवन में ही सांसारिक सुख और वृद्वावस्था में धर्म मोक्ष प्राप्ति का प्रयत् करना चाहिए अवस्था को पूरी तरह से निर्धारित करना कठिन है, इसलिए मनुष्त्रिवर्गका सेवन इच्छानुसार भी कर सकता है पर जब तक वह विद्याध्ययन करे, तब तक उसे ब्रह्मचर्य रखना चाहिए यानीकामसे बचना चाहिए
      कान द्वारा अनुकूल शब्, त्वचा द्वारा अनूकूल स्पर्श, आंख द्वारा अनुकूल रूप, नाक द्वारा अनुकूल गंध और जीभ द्वारा अनुकूल रस का ग्रहण किया जानाकामहै कान आदि पांचों ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन और आत्मा का भी संयोग आवश्यक है
      स्पर्श विशेष के विषय में यह निश्चित है कि स्पर्श के द्वारा प्राप् होने वाला विशेष आनंदकामहै यही काम का प्रधान रूप है कुछ आचार्यों का मत है कि कामभावना पशु-पक्षियों में भी स्वयं प्रवृत्त होती है और नित् है, इसलिए काम की शिक्षा के लिए ग्रंथ की रचना व्यर्थ है दूसरी ओर वात्स्यायन का मानना है कि चूंकि स्त्री-पुरुषों का जीवन पशु-पक्षियों से भिन् है इनके समागम में भी भिन्नता है, इसलिए मनुष्यों को शिक्षा के उपाय की आवश्यकता है इसका ज्ञान कामसूत्र से ही संभव है पशु-पक्षियों की मादाएं खुली और स्वतंत्र रहती हैं और वे ऋतुकाल में केवल स्वाभाविक प्रवृत्ति से समागम करती हैं इनकी क्रियाएं बिना सोचे-विचारे होती हैं, इसलिए इन्हें किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती
वात्स्यायन का मत है कि मनुष् को काम का सेवन करना चाहिए, क्योंकि कामसुख मानव शरीर की रक्षा के लिए आहार के समान है काम ही धर्म और अर्थ से उत्पन् होने वाला फल है  हां, इतना अवश् है कि काम के दोषों को जानकर उनसे अलग रहना चाहिएकुछ आचार्यों का मत है कि स्त्रियों को कामसूत्र की शिक्षा देना व्यर्थ है, क्योंकि उन्हें शास्त्र पढ़ने का अधिकार नहीं है इसके विपरीत वात्स्यायन का मत है कि स्त्रियों को इसकी शिक्षा दी जानी चाहिए, क्योंकि इस ज्ञान का प्रयोग स्त्रियों के बिना संभव नहीं है
      आचार्य घोटकमुख का मत है कि पुरुष को ऐसी युवती से विवाह करना चाहिए, जिसे पाकर वह स्वयं को धन् मान सके तथा जिससे विवाह करने पर मित्रगण उसकी निंदा कर सकें वात्स्यायन लिखते हैं कि मनुष् की आयु सौ वर्ष की है उसे जीवन के विभिन् भागों में धर्म, अर्थ और काम का सेवन करना चाहिए येत्रिवर्गपरस्पर संबंधित होना चाहिए और इनमें विरोध नहीं होना चाहिए
कामशास्त्र पर वात्स्यायन केकामसूत्रके अतिरिक्नागर सर्वस्’, ‘पंचसायक’, ‘रतिकेलि कुतूहल’, ‘रतिमंजरी’, ‘रतिरहस्आदि ग्रंथ भी अपने उद्देश् में काफी सफल रहे
वात्स्यायन रचितकामसूत्रमें अच्छे लक्षण वाले स्त्री-पुरुष, सोलह श्रृंगार, सौंदर्य बढ़ाने के उपाय, कामशक्ति में वृद्धि से संबंधित उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई है
इस ग्रंथ में स्त्री-पुरुष केमिलनकी शास्त्रोक् रीतियां बताई गई हैं किन-किन अवसरों पर संबंध बनाना अनुकूल रहता है और किन-किन मौकों पर निषिद्ध, इन बातों को पुस्तक में विस्तार से बताया गया है
      भारतीय विचारकों नेकामको धार्मिक मान्यता प्रदान करते हुए विवाह कोधार्मिक संस्कारऔर पत्नी कोधर्मपत्नीस्वीकार किया है प्राचीन साहित् में कामशास्त्र पर बहुत-सी पुस्तकें उपलब् हैं इनमें अनंगरंग, कंदर्प, चूड़ामणि, कुट्टिनीमत, नागर सर्वस्, पंचसायक, रतिकेलि कुतूहल, रतिमंजरी, रहिरहस्, रतिरत् प्रदीपिका, स्मरदीपिका, श्रृंगारमंजरी आदि प्रमुख हैं
पूर्ववर्ती आचार्यों के रूप में नंदी, औद्दालकि, श्वेतकेतु, बाभ्रव्, दत्तक, चारायण, सुवर्णनाभ, घोटकमुख, गोनर्दीय, गोणिकापुत्र और कुचुमार का उल्लेख मिलता है इस बात के पर्याप् प्रमाण हैं कि कामशास्त्र पर विद्वानों, विचारकों और ऋषियों का ध्यान बहुत पहले से ही जा चुका था
      वात्स्यायन ने ब्रह्मचर्य और परम समाधि का सहारा लेकर कामसूत्र की रचना गृहस् जीवन के निर्वाह के लिए की की इसकी रचना वासना को उत्तेजित करने के लिए नहीं की गई है संसार की लगभग हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद हो चुका है इसके अनेक भाष्य और संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं वैसे इस ग्रन्थ के जयमंगला भाष्य को ही प्रमाणिक माना गया है कामशास्त्र का तत्व जानने वाला व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम की रक्षा करता हुआ अपनी लौकिक स्थिति सुदृढ़ करता है साथ ही ऐसा मनुष् जितेंद्रिय भी बनता है कामशास्त्र का कुशल ज्ञाता धर्म और अर्थ का अवलोकन करता हुआ इस शास्त्र का प्रयोग करता है ऐसे लोग अधिक वासना धारण करने वाले कामी पुरुष के रूप में नहीं जाने जाते
वात्स्यायन ने कामसूत्र में केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, बल्कि कला, शिल्पकला और साहित्य को भी श्रेष्ठता प्रदान की है राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है करीब दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद् सर रिचर्ड एफ़ बर्टन ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया अरब के विख्यात कामशास्त्रसुगन्धित बागपर भी इस ग्रन्थ की छाप है राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी के अतिरिक् खजुराहो, कोणार्क आदि की शिल्पकला भी कामसूत्र से ही प्रेरित है
एक ओर रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मनोहारी झांकियां प्रस्तुत की हैं दूसरी ओर गीत-गोविन्द के रचयिता जयदेव ने अपनी रचनारतिमंजरीमें कामसूत्र का सार-संक्षेप प्रस्तुत किया है
कामसूत्र के अनुसार -
·         स्‍त्री को कठोर शब्‍दों का उच्‍चारण, टेढ़ी नजर से देखना, दूसरी ओर मुंह करके बात करना, घर के दरवाजे पर खड़े रहना, द्वार पर खड़े होकर इधर-उधर देखना, घर के बगीचे में जाकर किसी के साथ बात करना और एकांत में अधिक देर तक ठहरना त्‍याग देना चाहिए।
·         स्‍त्री को चाहिए कि वह पति को आकर्षित करने के लिए बहुत से भूषणों वाला, तरह-तरह के फूलों और सुगंधित पदार्थों से युक्‍त, चंदन आदि के विभिन्‍न अनूलेपनों वाला और उज्‍ज्‍वल वस्‍त्र धारण करे।
·         स्‍त्री को अपने धन और पति की गुप्‍त मंत्रणा के बारे में दूसरों को नहीं बताना चाहिए।
·         पत्‍नी को वर्षभर की आय की गणना करके उसी के अनुसार व्‍यय करना चाहिए।
·         स्‍त्री को चाहिए कि वह सास-ससुर की सेवा करे और उनके वश में रहे। उनकी बातों का उत्तर न दे। उनके सामने बोलना ही पड़े, तो थोड़ा और मधुर बोले और उनके पास जोर से न हंसे। स्‍त्री को पति और परिवार के सेवकों के प्रति उदारता और कोमलता का व्‍यवहार करना चाहिए।
·         स्‍त्री और पुरुष में ये गुण होने चाहिए- प्रतिभा, चरित्र, उत्तम व्‍यवहार, सरलता, कृतज्ञता, दीर्घदृष्टि, दूरदर्शी। प्रतिज्ञा पालन, देश और काल का ज्ञान, नागरिकता, अदैन्‍य न मांगना, अधिक न हंसना, चुगली न करना, निंदा न करना, क्रोध न करना, अलोभ, आदरणीयों का आदर करना, चंचलता का अभाव, पहले न बोलना, कामशास्‍त्र में कौशल, कामशास्‍त्र से संब‍ंधित क्रियाओं, नृत्‍य-गीत आदि में कुशलता। इन गुणों के विपरीत दशा का होना दोष है।
·         ऐसे पुरुष यदि ज्ञानी भी हों, तो भी समागम के योग्‍य नहीं हैं- क्षय रोग से ग्रस्‍त, अपनी पत्‍नी से अधिक प्रेम करने वाला, कठोर शब्‍द बोलने वाला, कंजूस, निर्दय, गुरुजनों से परित्‍यक्‍त, चोर, दंभी, धन के लोभ से शत्रुओं तक से मिल जाने वाला, अधिक लज्‍जाशील।
      वात्स्यायन ने पुरुषों के रूप को भी निखारने के उपाय बताए हैं उनका मानना है कि रूप, गुण, युवावस्था, और दान आदि में धन का त्याग पुरुष को सुंदर बना देता है तगर, कूठ और तालीस पत्र को पीसकर बनाया हुआ उबटन लगाना पुरुष को सुंदर बना देता है पुनर्नवा, सहदेवी, सारिवा, कुरंटक और कमल के पत्तों से बनाया हुआ तेल आंख में लगाने से पुरुष रूपवान बन जाता है
      आधुनिक जीवनशैली और बढ़ती यौन-स्वच्छंदता ने समाज को कुछ भयंकर बीमारियों की सौगात दी है एड्स भी ऐसी ही बीमारियों में से एक है अगर लोगों को कामशास्त्र का उचित ज्ञान हो, तो इस तरह की बीमारियों से बचना एकदम मुमकिन है


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