महर्षि दयानन्द सरस्वती का ऐतिहासिक उद्बोधन
(१८८० ई० में मेरठ आर्य समाज के उत्सव पर दिये गये अन्तिम व्याख्यान का अंश)
आर्यसमाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनेक बार मनोयोग पूर्वक पढ़ने योग्य महर्षि का अपूर्व सन्देश । आर्य समाज आज जिन आन्तरिक व बाह्य समस्याओं से झूज रहा है, उन समस्याओं का समाधान महर्षि के इस उद्बोधन में बताई बातों से ही सम्भव है ।
“मुझे लोग कहते हैं - जो कोई आता है आप उसे ही भरती कर लेते हैं । मेरा इस विषय में स्पष्ट उत्तर है कि मैं वेद ही को सर्वोपरि मानता हूं । वेद ही ऐसी पुस्तक है कि जिसके झण्डे तले सारे आर्य आ सकते हैं । इसलिए जो मनुष्य कह दे कि मैं वेदों को मानता हूं और आर्य हूं उसे आर्य समाज में सम्मिलित कर लो । ऐसे विश्वासी को अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।
लोग भिन्न-भेद पर अधिक दृष्टिपात करते हैं,परंतु आप लोग परस्पर भेद-मूलक बातों की अपेक्षा मेल-मूलक बातों पर अधिक ध्यान दो । तुच्छ भेदों और विरोधों को त्याग कर मेल-जोल की बातों में मिलाप सम्पादित करो । आपस में मिलती बातों में मिल जाने से विरोध और भेद स्वयमेव मिट जाते हैं ।
अब आपको अपना कर्तव्य आप पालन करना चाहिए । अपने जीवन को ऊंचा बनाओ और अपनी आवश्यकताओं को आप पूर्ण करो । इस समय तो यह अवस्था है कि जब कोई प्रबल प्रतिपक्षी आ जाता है तो आप तार पर तार देकर,मुझे ही बुलाते हैं । किसी संशय के उत्पन्न होने पर मुझ पर ही अवलम्बित रहते हो । उपदेश कराने हों तो मुझ पर ही निर्भर करते हो । जब कभी आपस में परस्पर की फूट, फूट निकलती है,वैमनस्य बढ़ जाता है,अनबन बढ़ने लगती है और वैर-विरोध उत्पन्न होआता है, तो उसे मिटाने की चिन्ता मुझे ही करनी पड़ती है । मैं ही आकर आप में शान्ति स्थापन करता हूं । आपके अन्तःकरणों में अवनतिकारी अन्तर नहीं पड़ने देता । आपके पारस्परिक स्नेह के सुकोमल सूत्र को छीजने नहीं देता ।
परन्तु महाशयो ! मैं कोई सदा नहीं बनारहूंगा । विधाता के नियम-न्याय में मेरा शरीर भी क्षणभंगुर है । काल अपने कराल पेट में सब को पचा डालता है । अन्त में इस देह के कच्चे घड़े को भी उसके हाथों टूटना है ।
सोचो, यदि अपने पांव पर खड़ा होना नहीं सीखोगे तो मेरे आंख मीचने के पीछे क्या करोगे । अभी से अपने को सुसज्जित कर लो । स्वावलम्बन के सिद्धान्त का अवलम्बन करो । अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के योग्य बन जाओ । किसी दूसरे के सहारे की अपेक्षा अपने ही पर निर्भर करो ।
मुझे विश्वास है कि आप में ऐसे अनेक सज्जन उत्पन्न होंगे जो उत्तमोत्तम कार्य कर दिखायेंगे । प्राणपण से अपने पवित्र प्रणों की पालना करेंगे । आर्य समाज का बड़ा विस्तार हो जायगा । कालान्तर में ये वाटिकायें हरीभरी,फूली-फली और लहलहाती दिखाई देंगी । ईश्वर कृपा से वह सब कुछ होगा, परन्तु मैं नहीं देख सकूंगा ।”
महर्षि दयानंद के बारे मे अन्य महापुरुषों के
विचार -
१- “स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र प्रदान
करने वाले जाज्वल्यमान नक्षत्र थे दयानंद |” – लोक
मान्य तिलक
२- “आधुनिक भारत के आद्यनिर्मता तो दयानंद ही
थे |”- सुभाष चंद्रबोस
३- “सत्य को अपना ध्येय बनाये और महर्षि दयानंद
को अपना आदर्श|”- स्वामी श्रद्धानंद
४- “महर्षि दयानंद इतनी बड़ी हस्ती हैं के मैं उनके
पाँव के जूते के फीते बाधने लायक भी नहीं |”- ए
.ओ.ह्यूम
५- “स्वामी जी ऐसे विद्वान और श्रेष्ठ व्यक्ति थे,
जिनका अन्य मतावलम्बी भी सम्मान करतेथे।”- सर
सैयद अहमद खां
६- “आदि शङ्कराचार्य के बाद बुराई पर सबसे
निर्भीक प्रहारक थे दयानंद |”- मदाम ब्लेवेट्स्की
७- “ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को
कारागार से मुक्त कराने और जाति बन्धन तोड़ने के
लिए हुआ था। उनका आदर्श है-आर्यावर्त ! उठ, जाग,
आगे बढ़।समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर।”- फ्रेञ्च
लेखक रिचर्ड
८- “गान्धी जी राष्ट्र-पिता हैं, पर स्वामी दयानन्द
राष्ट्र–पितामह हैं।”- पट्टाभि सीतारमैया
९- “भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में
स्वामी दयानन्द ने डाली थी।”- सरदार पटेल
१०- “स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने
आर्यावर्त (भारत)आर्यावर्तीयों (भारतीयों) के
लिए की घोषणा की।”-एनी बेसेन्ट
११- “महर्षि दयानंद स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम
योद्धा थे |”-वीर सावरकर
१२- “ऋषि दयानंद कि ज्ञानाग्नि विश्व के मुलभुत
अक्षर तत्व का अद्भुत उदाहरण हैं |”-डा. वासुदेवशरण
अग्रवाल
१३- “ऋषि दयानंद के द्वारा कि गई वेदों कि
व्याख्या की पद्धति बौधिकता, उपयोगिता,
राष्ट्रीयता एवं हिंदुत्व के परंपरागत आदेशो के अद्भुत
योग का परिणाम हैं |” -एच. सी. ई. जैकेरियस
१४- “स्वामी दयानंद के राष्ट्र प्रेम के लिए उनके
द्वारा उठाये गए कष्टों, उनकी हिम्मत, ब्रह्मचर्य
जीवन और अन्य कई गुणों के कारण मुझको उनके प्रति आदर हैं | उनका जीवन हमारे लिए आदर्श बनजाता हैं | भारतीयों ने उनको विष पिलाया और वे
भारत को अमृत पीला गए|”-सरदार पटेल
१५- “दयानंद दिव्य ज्ञान का सच्चा सैनिक था,
विश्व को प्रभु कि शरणों में लाने वाला योद्धा
और मनुष्य व संस्थाओ का शिल्पी तथा प्रकृति
द्वारा आत्माओ के मार्ग से उपस्थित कि जाने
वाली बाधाओं का वीर विजेता था|”-योगी
अरविन्द
१६- “मुझे स्वाधीनता संग्राम मे सर्वाधिक प्रेरणा
महर्षि के ग्रंथो से मिली है |”-दादा भाई नैरोजी
१७- “मैंने राष्ट्र, जाति और समाज की जो सेवा की
है उसका श्रेय महर्षि दयानंद को जाता है|”-श्याम
जी कृष्ण वर्मा
१८- “स्वामी दयानंद मेरे गुरु हैं उन्होंने हमें स्वतंत्रता
पूर्वक विचारना, बोलना और कर्तव्यपालन करना
सिखाया|”-लाला लाजपत राय
१९- “स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र
प्रदान करने वाले जाज्वल्यमान नक्षत्र थे दयानंद |”-लोकमान्य तिलक
२०- “हमारे विचार और मानसिक विकास अधिकाँश आर्य समाज की देन है|”-बलिदानी भगत सिंह
२१- “राजकीय क्षेत्र मे अभूतपूर्व कार्य करने वाले महर्षि दयानंद महान राष्ट्रनायक और क्रन्तिकारी महापुरुष थे |”- लाल बहादुर शास्त्रीस्वाधीनता के मन्त्रदृष्टा -
महर्षि दयानन्द सरस्वती भारत की स्वाधीनता के मन्त्रदाता थे । १८५७ के संग्राम के विफल होने के पश्चात् देश में जो निराशा छा गई थी, उस वेला में देशवासियों में राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं स्वतन्त्रता की भावना उत्पन्न करने वाला एकता का शिल्पी महापुरुष स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२५-१८८३) ही थे । उन्हीं के उपदेशों के फलस्वरूप आर्यसमाज ने जन-जागरण का ऐसा शंखनाद फूंका कि आर्यों में देशहित मरने-मिटने की एक होड-सी लगी रही । आर्य समाज के सेवकों ने राजनीति के क्षेत्र में जो बलिदान दिए हैं, उनकी चर्चा करते हुए प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता प्रो० राजेन्द्र जी 'जिज्ञासु' ने लिखा है -
१) विदेशों में ४० वर्ष तक भारतीय स्वाधीनता के लिए संघर्षरत रहनेवाला तपःपूत पं० श्यामजी कृष्ण वर्मा महर्षि दयानन्द का ही शिष्य था ।
२) विदेशों में निर्वासन के कारण ४० वर्ष बिता कर स्वदेश लौटने वाला क्रान्तिवीर अजीत सिंह भी आर्यसमाज की देन है ।
३) १८५७ ई० के विप्लव के पश्चात् सर्वप्रथम फांसी पाने वाले उ०प्र० के क्रांतिकारी दल के प्रमुख वीर आर्यसमाजी ही थे । रामप्रसाद बिस्मिल, रोशनसिंह आदि ।
४) १८५७ ई० के पश्चात् सेना में विद्रोह का प्रचार करके फांसी पाने वाला प्रथम क्रांतिवीर सोहनलाल पाठक आर्यसमाजी ही था ।
५) विदेशों में सर्वप्रथम फांसी दण्ड पाने वाला वीर मदनलाल धींगरा भी आर्यसमाजी था ।
६) देशी राज्यों (Indian States) में भी आर्यों का राष्ट्रवादी विचारों के कारण दमन होता रहा । देशभक्ति के अपराध में पतियाला राज्य ने सर्वप्रथम देशभक्तों को निष्कासित किया, बन्दी बनाया व उन पर अभियोग चलाया । यह सन् १९०९ ई० की घटना है । दर्जनों आर्यों को राज्य से निष्कासित किया गया । ये सब लोग आर्य थे । इनमें से कुछ प्रमुख सज्जन थे - राजा ज्वाला प्रसाद, ला० नारायणदत्त, महाशय रौनक राम शाद, रौनक सिंह जी, शंकर लाल जी, पृथ्वी चन्द्र जी, ला० पतराम व उनके सुपुत्र श्री दिलीप चन्द नरवाना ।
७) भारत के वायसराय हार्डिंग पर बम्ब फैंकने के अपराध में बलिवेदी पर चढ़ने वाले व बन्दी होने वाले अधिक वीर भी आर्यसमाजी ही थे । यथा भाई बालमुकुन्द, प्रतापसिंह वारहट व ला० बलराज आदि ।
८) १९३१ ई० में पंजाब के गवर्नर पर गोली चलाकर शासन को कंपाने वाला हुतात्मा हरिकृष्ण आर्य समाजी ही था । इसी के भाई श्री भक्तराम ने मुसलमान पठान के वेश में नेताजी सुभाष को जर्मनी पहुंचाया था ।
९) एक आर्य सेना अधिकारी चन्दन सिंह गढवाली ने पेशावर में सत्याग्रहियों पर गोली चलाने से इन्कार करके वर्षों जेल में काटे ।
१०) केवल आर्य समाज के ही एक संन्यासी को वायसराय के आदेश से स्वाधीनता संग्राम में बन्दी बनाया गया । केवल एक आर्य साधु पर ही एक प्रान्त के गवर्नर की हत्या के षड्यन्त्र का दोष लगाया गया । उसे लाहौर के शाही किले में यातनाएं दी गईं । यह संन्यासी थे - स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी । इन पर सेना में विद्रोह फैलाने का भी अभियोग चला ।
११) सारे भारत में केवल एक ही उपदेशक विद्यालय की स्वाधीनता संग्राम में तलाशी ली गई और वह आर्यसमाज का उपदेशक विद्यालय लाहौर था ।
१२) प्रथम सत्याग्रही जिसको न्यायालय के अपमान के लिए दंडित किया गया, वह पं० मनसाराम 'वैदिक तोप' सुप्रसिद्ध आर्य विद्वान् थे ।
१३) केवल एक ही भारतीय वैज्ञानिक को स्वाधीनता संग्राम में बन्दी बनाया गया । वे थे श्री डॉ० सत्यप्रकाश जी । उन पर बम बनाने का दोष लगाया गया ।
१४) देश की स्वाधीनता के लिए केवल चार देशभक्त जीवित जलाए गये और वे चारों हैदराबाद के आर्यसमाजी थे - कृष्णराव ईटेकर, उनकी पत्नी श्रीमती गोदावरी देवी, काशीनाथ धारूर तथा गोविन्द राव जी।
१५) डी०ए०वी० कालेज कानपुर के छात्रावास में घुस कर अंग्रेजी शासन ने सालिगराम छात्र को गोलियां मार कर शहीद कर दिया ।
१६) लाहौर डी०ए०वी० कालेज में आर्य युवक समाज के यशस्वी प्रधान प्रा० भगवानदास (जो इस संस्था के यशस्वी प्राचार्य रहे) को पीटने के लिए गई पुलिस ने उन्हीं के क्लास रूम में उन्हीं की आकृति के एक और प्राध्यापक को लहूलुहान कर दिया ।
१७) आर्यसमाज के गुरुकुलों व स्कूलों, कालेजों ने स्वाधीनता के लिए गौरवपूर्ण बलिदान देकर राष्ट्र की ठण्डी रगों में गर्म रक्त का संचार किया ।
१८) भारतीय स्वाधीनता संग्राम में देशी राज्यों में केवल एक ही स्वाधीनता सेनानी को कारागार में विष दिया गया था । वह था - आर्यसमाज का महान् नेता भाई श्यामलाल वकील ।
१९) आर्य समाज ने राष्ट्रीय जागृति का जो विलक्षण कार्य किया, उसके फल स्वरूप देश के केवल एक ही राष्ट्रीय नेता को जामा मस्जिद के मिम्बर से व सिखों के अकालतख्त से जन समूह को सम्बोधित करने का गर्व प्राप्त हुआ और वे थे आर्य संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द जी ।
(सन्दर्भ ग्रन्थ - प्रो० राजेन्द्र 'जिज्ञासु' रचित १. 'धर्मबोध-विवेक विहार', और २, 'आर्यसमाज - क्या और क्यों?')
[सधन्यवाद भावेश मेरजा]
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