Thursday, October 13, 2016

बिजनौर, मुज़फ्फरनगर और सभी हिन्दू मुस्लिम झगड़ो का मूल कारण



बिजनौर,मुज़फ्फरनगर और सभी हिन्दू मुस्लिम झगड़ो का मूल कारण

बिजनौर, मुज़फ्फरनगर और सभी हिन्दू मुस्लिम झगड़ो का मूल कारण समझने के लिए जरूरी है इस्लाम के दो आयामों को समझें; पहला है  तबलीगी जमात और दूसरा रेप जिहाद |
तबलीगी जमात क्या है?
            तबलीगी जमात क्या है? उस दिन ओसामा बिन लादेन के तिक्का-बोटी दिवस की बरसी थी। टी वी के इक्का- दुक्का चैनलों पर घूँघट काढ़े एक समाचार फ़्लैश हुआ कि कांधला के निकट एक ट्रेन में तब्लीगी जमात के कुछ लोगों के साथ मार- पीट हुई और अगले दिन बीकानेर से हरिद्वार जाने वाली ट्रेन रोक कर उस पर पत्थर बरसाए गए। "डरपोक किस्म के तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया" पर एक-आध बार केबाद घूँघट वाला शरमाया-शरमाया समाचार भी गायब हो गया, मगर सोशल मीडिया विशेष रूप से फेस बुक पर 'एक और असफल गोधरा' के शीर्षक से ये समाचार बड़े विस्तार से चर्चा का केंद्र बना। घटना की मोटी-मोटी जानकारी येहै कि तब्लीगी जमात के एक समूह ने ट्रेन में यात्रा कर रहे लोगों {काफिरों} को कुफ्र-ईमान, दारुल-हरब और दारुल-इस्लामसमझने का प्रयास किया। इस पर कुछ बहस हुई। बहस धींगा- मुश्ती में बदल गयी और जमातियों के गाल गुलाबी हो गए। इसका एक वर्ज़न और भी है जो एक कुटे हुए जमाती ने बताया है। उसके अनुसार वो और उसके कुछ साथी दिल्ली में एक इज्तमा {इस्लामीएकत्रीकरण} में भाग लेने महाराष्ट्र से आये थे। इज्तमा के बाद उनकी इच्छा अपने मूल केंद्र सहारनपुर स्थित मदरसे मजाहिरे- उलूम जाने की हुई। वो ट्रेन में सवार हुए। रास्ते में वो पेशाब जाने के लिए सामूहिक रूप से उठे। टायलेट के दरवाजे पर भीड़ थी। उन्होंने वहां खड़े लोगों से रास्ता छोड़ने के लिए कहा और वहां खड़े लोगों ने उनकी पिटाई शुरू कर दी। किसी भी तरह ये मानना कठिन है कि पेशाब करने जाने के निवेदन पर लोगों ने 6 मासूम लोगों को अकारण पीटना शुरू कर दिया होगा। मारपीट का प्रारम्भ सदैव बातचीत के बहस, बहस के कठहुज्जती, कठहुज्जती के व्यक्तिगतकटाक्षों / आक्षेपों में बदल जाने के कारण होता है। बहरहाल पिटे-छिते जमातियों ने अगले स्टेशन पर ट्रेन से उत्तर कर स्थानीय इमाम से सम्पर्क किया। इमाम ने सैकड़ों लोगों के साथ थाना घेर लिया। प्रशासन ने मामला दर्ज कर जाँच के आदेश दे दिये।कुछ प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दिल्ली से सहारनपुर जा रही ट्रेन में महाराष्ट्र के पांच जमातियों के साथ मारपीट का कारण ये था कि ट्रेन में तबलीगी मुजाहिद कुछ महिलाओं को छेड़ रहे थे। महिलाओं के प्रतिवाद करने पर यात्रियों ने उन्हें जुतियाया। समाजवादी पार्टी के स्थानीय विधायक नाहीद हसन को इस जाँच के आदेश से चैन नहीं पड़ा और उन्होंने अगले दिन अपने हज़ारों समर्थकों के साथ ट्रेन की पटरी पर धरना दिया। भीड़ उग्र हो उठी और उसने बीकानेर से हरिद्वार जा रही ट्रेन नंबर 04735 को रोक कर उस पर पथराव किया। उसमें आग लगाने कीकोशिश की। स्थानीय डी.एम. के नेतृत्व में पुलिस ने भीड़ को लाठी चार्ज कर के तितर-बितर कर दिया और ट्रेनों को आगे रवाना किया। इस घटना में 16 पुलिस वाले भी घायल हुए। इससे पहले कि ये विषय समाज के ध्यान से उतर जाये, आवश्यक है कि इस बात, बहस, झगडे, उपद्रव की जड़ तक जाया जाये, अर्थात समझा जाये कि जमात किस बला का नाम है ? जमात का शाब्दिक अर्थ समूह है मगर इसके व्यवहारिक अर्थ हैं ' उन लोगों का समूह जो नवधर्मांतरित मुस्लिमों को कट्टर मुसलमान यानी अपनी दृष्टि में सही मुसलमान बनाने का कार्य करते हैं'। जमात इस्लामी चिंतन का पहले दिन से हिस्सा हैं। इस्लाम ने अपने जन्म के साथ ही अपनी दृष्टि से संसार के दो भाग किये। पहला अहले-इस्लाम यानी मुसलमान और उनके प्रभुत्व-स्वामित्व वाली धरती यानी दारुल-इस्लाम। दूसरा मुस्लमों से इतर लोगों यानी काफिरों, मुशरिकों, मुलहिदों, मुन्किरों, मुरतदों का समाज और उनकी धरती यानी दारुल-हरब अर्थात युद्ध क्षेत्र। दारुल-हरब के लोगों को मुसलमान बनाना औरदारुल-हरब को दारुल-इस्लाम में बदलना हर मुसलमान का कर्तव्य है। यही इस्लाम के पहले दिन यानी 1400 वर्षों से पल-पल, क्षण-क्षण विचार, क्रिया के स्तर पर घटित होने वाला उपद्रव है। यही जिहाद है। ये बहला-फुसला कर, मार-पीट कर, लड़कियां भगा कर यानी जैसे बने करने वाला अनवरत द्वंद्व है। इस प्रक्रिया को इस तरह समझें। मान लीजिये कि कोई मतिमन्द , मतकटा हिन्दू, ईसाई, पारसी, यहूदी किसी तरह मुसलमान बनानेके लिए तैयार हो जाये तो एक दाढ़ीदार मुल्ला उसे कलमा पढ़ायेगा और उसका नाम बदल कर अरबी मूल का रख देगा। मगर धर्मान्तरित व्यक्ति और मुल्ला समूह ऐसे ही नहीं मान लेगा कि वोमुसलमान हो गया चूँकि इस्लाम की मांगें तो सम्राज्यवादी हैं। अब अनिवार्य रूप से उस व्यक्ति को अपने पूर्वजों से आत्मिक-मानसिक सम्बन्ध तोड़ने होंगे। अपने आस्था केन्द्रों, अपनीधरती, अपनी प्रथाओं, अपने इतिहास पुरुषों से घृणाकरनी पड़ेगी। स्वयं को कृतिम रूप से अरबी बनाने के काम में लगना पड़ेगा। ये कुछ-कुछ अफ़्रीकी मूल के अमरीकी गायक माइकिल जैक्सन के अपने शरीर की काली चमड़ी को गोरा करवाने की तरह है।इस प्रक्रिया में माइकिल जैक्सन को बरसों रात-दिन भयानक पीड़ा होती रही और अंत में पीड़ा-निवारक दवाओं के भारी सेवन के कारण ही उसके प्राण निकले। ये कार्य अत्यंत दुष्कर है अतः पीढ़ियों चलता है। हर पीढ़ी को मार-मार कर मुसलमान रखना पड़ता है। जमातइसी काम को समझा-बुझा कर करने वाला उपकरण है। जमात में सम्मिलित व्यक्ति मानसिक रूप से काफिरों से नापाक धरती की अल्लाह की धरती बनाने में लगा रहता है। ये मदरसों, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अध्यापक और छात्रों का समूह होते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार को छोड़ कर देश के अन्य भागों का मुसलमान अभी तक पूरी तरह तालिबानीनहीं बना है। ये समूह छुट्टियों में भारत के मुस्लिम क्षेत्रों में फ़ैल जाते हैं और उसे दिन में पांच बार नमाज़ पढने, अल्लाह एक है और उसमें कोई शरीक नहीं है-बताने, मुहम्मद उसका आखिरी पैगम्बर है समझाने में लग जाते हैं। कुरआन में मुकम्मल दीन है, मुहम्मद का किया-धरा जो हदीसों में वर्णित है को अपने जीवन में उतारने को सुन्नत बताने, सुन्नत को जीवन में उतारना अनिवार्य है समझाने, यानी 1400 वर्ष पूर्व के अरबी चिंतन को आज के लोगों के दिमाग में ठूंसने में अनवरत कोशिश करते हैं। नवधर्मांतरित मुसलमानों को सही मुसलमान बनाना यानी तालिबानी बनाना बड़ा पवित्र काम है। ऐसा करना जन्नत का दरवाजा खोलता है। जहाँ 72 कुंवारी हूरें हैं जिनके साथ अनंत काल तक बिना थके, बिना रुके, बिना स्खलित हुए भोग किया जा सकता है। ये हूरें भोग के बाद फिर से कुंवारी हो जानेकी अजीब सी, अनोखीक्षमता रखती हैं। जन्नत में गिलमां भी { कमनीय काया वाले लड़के } तत्पर मिलते हैं।तिरमिजी के खंड 2 पृष्ठ 138 में कहा गया है ' जो आदमी जन्नत जाता है उसे 100 पुरुषों के पुरुषत्व के बराबर पौरुष दिया जायेगा' 'उनके पास ऐसे लड़के आ जा रहे हैं जिनकी अवस्था एक ही रहेगी तुम उन्हें देखो तो समझोगे कि मोती बिखरे हैं'। अब उन लोगों की कल्पना कीजिये जो हर पल इस अहसास से भरे हैं कि वो काफिरों, शैतानों को दुनिया में हैं। उनका काम इसे बदलना है और पुरुस्कार रूप में जन्नत जाना है। इन लोगों के लिए पृथ्वी घर नहीं है। पृथ्वी तो ट्रांजिट कैम्प है जहाँ इस्लाम की खिदमत करते हुए अपनी सूखी-सड़ीबीबियों के साथ कुछ समय बिताना है। असली घर तो जन्नत है जहाँ हूरें और गिलमां आतुरता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। लार टपकाता, कमर लपलपाता हुआ ये मानस हर समय इसी उधेड़-बुन में लगा रहता है और जगह-बेजगह विवाद खड़े करता है।नमाज में एक क्रिया होती है। नमाज पढ़ने वाला अपने दायें हाथ की तर्जनी उठा कर कहता है खुदा एक है और मैं इसकी गवाही देता हूँ। यही बात संभवतः यही विवाद की जड़ थी। ट्रेन में ऐसे लोग भी थे जिन्होंने दायें हाथ की चारों उँगलियाँ, अंगूठा और हथेली की गद्दी उठा कर प्रमाणित किया कि वो इसके विपरीत गवाही दे रहे हैं। इस मासूम सी क्रिया के कारण गाल गुलाबी करने और फांय-फांय करने की क्या ज़रूरत है ? खैर जमात पर लौटते हैं। जमातों का कार्य कितनी प्रबलता से और अनवरत किया जाता है, को इस रौशनी में देखें। अफगानिस्तान के हिन्दू-बौद्ध अतीत को नोच-नोच कर, खुरच-खुरच कर अफगानी समाज से निकलने का काम इन्हीं जमातियों ने किया है। कश्मीर में भारत विरोधी भावनायें भड़काने का काम, कश्मीरी समाज को भारत द्रोही-हिंदुद्रोही बनाने का काम वहां सदियों से आ रही तब्लीगी जमातों और इनके अड्डे मदरसों ने किया है। पारसी, बहाई, इस्माइली तीनों मज़हबों काजन्म ईरान में हुआ मगर आज इनका नामलेवा-पानीदेवा ईरान में कोई नहीं बचा। इनके मानने वाले प्रमुख रूप से भारत में पाये जाते हैं। कहने के लिए कुछ मुल्ला कहते हैं कि मजहब में कोई जबरदस्ती नहीं, तो ये तीनों ईरान से कैसेगायब हो गए?  इसकी जड़ में अनेकों प्रकार कीइन्हीं तब्लीगी जमातों का अनवरत परिश्रम है। अतीत में भारतीय अपने स्वाभाविकसंस्कारों के कारण इस धर्मांतरण को गुरु बदलने की तरह देखते थे। ऐसी भोली-भाली मगर बौड़म सोच कापरिणाम बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण और उसकी अनिवार्य परिणिति देश के उन हिस्सों के भारत से टूट जाने में हुई।  मित्रों, यह घटना 2015 की है पर आज भी प्रासंगिक है |

रेप जिहाद: इस्लाम का सबसे खतरनाक हथियार
अब मैं उन सभी हिन्दुओ से जो मेरी बातों का बहुत बुरा मानते हैं, क्षमा चाहते हुए इस्लाम के सबसे खतरनाक और घृणित हथियार के बारे में आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।इस्लाम का ये हथियार है रेप जिहाद जिसके की हम हिन्दू पिछले 1300 से भी अधिक वर्षो से बहुत निरीह शिकार रहे हैं।मुसलमान की अपनी धार्मिक मान्यताओं में काफिर की बेटी उसके लिये मनोरंजन का साधन है इसके अलावा कुछ नहीँ है।वो काफिर की बेटी को खराब करके खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं।उनके समाज में जो ज्यादा से ज्यादा काफिर की बेटी से बलात्कार करता है,उसे बड़ा मर्द और असली मुसलमान माना जाता है।ऐसे लोग मुस्लिम समाज में नायक माने जाते हैं।
जब मुसलमान इस देश में आते थे तो जिस गांव से निकल जाते थे उस गांव को बिलकुल उजाड़ देते थे।जब उन्होंने यहाँ शासन शुरू किया तब उन्होंने अपने अपने ओहदे के हिसाब से हरम बनाये जिसमे अपने मनोरंजन के लिये औरतों को भर देते थे।मुस्लिम शासन में भारत में नियम बना दिया गया था की शादी के बाद दुल्हन पहली रात मुस्लिम जमीदार के घर में रहती थी जहाँ उसका बलात्कार होता था।पहली रात से शुरू होकर ये प्रथा जब तक जमींदार का मन चाहे,तब तक पर आ गयी थी।
स्थिति यहाँ तक हो गयी थी की हिन्दू जो कन्या को देवी मानते थे वो बेटी का जन्म होते ही उसे मार कर गाढ़ दिया करते थे।उन्हें ये लगता था कि यदि बेटी जीवित रही और जवान हो गयी तो इसकी भी दुर्गति होगी और हम सब भी मारे जाएंगे।ये तब तक होता रहा जब तक की अंग्रेज भारत के शासक नहीँ बने थे।अंग्रेजो के शासक बनने के बाद भी ये प्रथा बन्द नहीँ हुई पर इसमें काफी कमी आ गयी थी।आज भी कन्या भ्रूण हिन्दुओ के मन में इसी कारण है की वो अपने आप को बेटी की रक्षा करने में समर्थ नहीँ मानता।
इस रेप जिहाद ने हिन्दू जनमानस के मन मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव डाला और हिन्दू समाज अपने आत्मसम्मान को खो बैठा। इसका एक बहुत दुखद पहलू ये भी है की हिन्दू समाज कभी भी इसके खिलाफ ठोस आवाज नहीँ उठा पाया।यहाँ तक की हिन्दुओ के राजाओं जमींदारों में तो ये फैशन हो गया था की वो अपनी बहन बेटियो को रखैल बनने के लिये मुस्लिम सुल्तानों और उनके गुर्गो के पास भेजते थे।
आम हिन्दू भी डर कर मुस्लिम आतंक के सामने समर्पण कर चुका था।मुस्लिम शासन में हिन्दुओ ने विपुल साहित्य की रचना की परन्तु मुस्लिम अत्याचारों के विरुद्ध बहुत कम लिखा। मुस्लिमो का डर जनमानस में इस कदर बैठा हुआ था की गोस्वामी तुलसीदास जैसा संत और विचारक एक शब्द भी इस्लाम द्वारा हिन्दुओ पर किये जा रहे अत्याचार के विरोध में नहीँ लिख सका जबकी इस्लाम ने उनपर इतने अत्याचार किये की जिनका वर्णन मुश्किल है।जिस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ उसी दिन उनके गांव राजापुर पर मुसलमानों ने आक्रमण किया था और उनके माता पिता और परिजनों सहित सभी गांव वालों की हत्या कर दी थी।जो लोग भाग सके वो भाग गए थे।तुलसीदास जी के पिता उस समय के बड़े प्रतिष्ठित ज्योतिषी थे।उन्होंने दूरदर्शिता दिखाते हुए तुलसीदास जी को अपने घर से कही दूर भिजवा दिया था जिससे तुलसीदास जी के प्राण बचे। ये कोई मुर्ख भी समझ सकता है की जब तुलसीदास जी के घर की औरतों को मारा गया होगा तो उससे पहले क्या हुआ होगा? अब ये मुझ मुर्ख की समझ से बाहर है की कैसे इतना बड़ा विद्वान जिसने इतने विपुल साहित्य की रचना की,एक शब्द भी अपने परिवार पर हुए अत्याचार के बारे में नहीँ लिख सका।
ये बहुत बड़ा विषय है जिसे मैं कम से कम शब्दों में समेटना चाहता हूँ क्योंकि हिन्दू के पास पढ़ने का धैर्य बहुत कम बचा है।


 (Our purpose to write this blog is not to hurt feelings of any individual, but only to spread the truth)
(इस ब्लॉग का उद्देश्य किसी की भावनाओ को ठेस न पंहुचा कर अपितु सत्य को उजागर करना है जिन मित्रों को इस लेख में थोडा सा भी संदेह हो, अथवा अगर आपको ऊँगली उठानी है तो प्रमाण के साथ उत्तर दे कर ऊँगली उठाये।)

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